युवाओं के लिए स्वामी विवेकानंद का सन्देश
जैसा कि हमें ज्ञात है कि स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका और यूरोप प्रवास के बाद भारतवर्ष में अपने विचारों का प्रचार किया| स्वामी जी ने वेदांत का डंका सारी दुनिया में बजाय और सभी धर्मो के बीच सामंजस्य को ही ईश्वर तक पहुचने का मार्ग बताया| साथ ही उन्होंने अपने अमेरिका और यूरोप भ्रमण के बाद भारतीय और विदेशी विचारों का तुलनात्मक अध्ययन किया और भारतवर्ष के उत्थान के लिए युवाओं को अपना सन्देश विभिन्न भाषणों के माध्यम से दिया| उनमे से कुछ विचार यहाँ प्रस्तुत हैं| आप सभी का सहयोग इसमें अपेक्षित है|
राष्ट्र के सच्चे हितैषी
दोषारोपण अथवा निंदा करने की भला आवश्यकता क्या? ऐसा कौन सा समाज है जिसमे दोष न हों? सभी समाज में तो दोष हैं| यह तो सभी कोई जानते हैं| आज का एक बच्चा भी इसे जानता है; वह भी सभा मंच पर खडा होकर हमारे सामने हिन्दू धर्म की भयानक बुराइयों पर एक लम्बा भाषण दे सकता है| जो भी अशिक्षित विदेशी पृथ्वी का भ्रमण करता हुआ भारत में पहुचता है, वह रेल पर से भारत को उड़ती नजर से देख भर लेता है, और बस, फिर भारत की भयानक बुराइयों पर बड़ा सारगर्भित वयाख्यान देने लगता है| हम जानते हैं कि यहाँ बुराइयाँ हैं| पर बुराई तो हर कोई दिखा सकता है| मानव समाज का सच्चा हितैषी तो वह है, जो इन कठिनाइयों से बाहर निकलने का उपाय बताये| यह तो इस प्रकार है कि कोई एक दार्शनिक एक डूबते हुए लड़के को गंभीर भाव से उपदेश दे रहा था, तो लड़के ने कहा, 'पहले मुझे पानी से बाहर निकालिए फिर उपदेश दीजिये|' बस ठीक इसी तरह से भारतवासी भी कहते हैं, 'हम लोगों ने बहुत उपदेश सुन लिए, बहुत सी संस्थाएं देख लीं, बहुत से पत्र पढ़ लिए, अब तो ऐसा मनुष्य चाहिए जो अपने हाथ का सहारा दे हमें इन दुखों से बाहर निकाल दे कहाँ है वह मनुष्य जो हमें वास्तविक प्रेम करता है, जो हमारे प्रति सच्ची सहानुभूति रखता है?' बस उसी आदमी की हमें जरुरत है|
(मद्रास के विक्टोरिया हॉल में दिया गया भाषण)
महापुरुषों का आदर्श
क्या भारतवर्ष में कभी सुधारकों का अभाव था? क्या तुमने भारत का इतिहास पढ़ा है? रामानुज, शंकर, नानक, चैतन्य, कबीर और दादू कौन थे? ये सब बड़े-बड़े धर्माचार्य जो भारत गगन में अत्यंत उज्जवल नक्षत्रों की तरह एक के बाद एक उदित हुए और फिर अस्त हो गए, कौन थे? क्या रामानुज के ह्रदय में नीच जातियों के लिए प्रेम नहीं था? क्या उन्होंने सारे जीवन भर चांडाल तक को अपने संप्रदाय में लेने का प्रयत्न तक नहीं किया? क्या नानक ने मुसलमान और हिन्दू दोनों को समान भाव से शिक्षा देकर समाज में एक नयी अवस्था लाने का प्रयत्न नहीं किया? इन सब ने प्रयत्न किया, और यह काम आज भी जारी है| भेद केवल इतना है वे आज के समाज सुधारकों की तरह दम्भी नहीं थे, वे इनके समान अपने मुह से कभी अभिशाप नहीं उगलते थे| उनके मुह से केवल आशीर्वाद ही निकलता था| उन्होंने कभी भर्त्सना नहीं की| उन्होंने लोगों से कहा जाति को सदैव उन्नतिशील होना चाहिए| उन्होंने अतीत में द्रष्टि डालकर कहा "हिन्दुओ, तुमने अभी तक जो किया अच्छा ही किया, पर भाइयो तुम्हे इससे भी अच्छा करना होगा|" उन्होंने ये नहीं कहा "पहले तुम दुष्ट थे और अब तुम्हें अच्छा होना होगा|" उन्होंने यही कहा "पहले तुम अच्छे थे अब और भी अच्छे बनो|" इससे जमीन आसमान का अंतर पैदा हो जाता है| हम लोगों को अपनी प्रकृति के अनुसार उन्नति करनी होगी| विदेशी संस्थाओं ने बलपूर्वक जिस कृत्रिम प्रणाली को हममे प्रचलित करने की चेष्टा की है उसके अनुसार काम करना वृथा है| वह असंभव है| मै दूसरी कौमों की सामाजिक प्रथाओं की निंदा नहीं करता, वे उनके लिए अच्छी हैं पर हमारे लिए नहीं| उनके लिए जो कुछ अमृत है वह हमारे लिए विष हो सकता है| पहले यही बात सीखनी होगी|
Wednesday, February 3, 2010
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